(PDF) हनुमान जी का सुंदरकांड PDF Free download

Download हनुमान जी का सुंदरकांड Book Pdf free of coast here. श्रीरामचरितमानस एक प्रासादिक ग्रन्थ है। इस पवित्र ग्रन्थके पठन- पाठन और मननसे मनुष्यका सहज ही कल्याण होता है। इसका प्रत्येक दोहा, चौपाई, सोरठा तथा छन्द महामन्त्र है। सुन्दरकाण्डके संदर्भमें तो कहना ही क्या है? यद्यपि सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस ही मनोहर है, किन्तु इसका सुन्दरकाण्ड अत्यन्त ही मनोहर है जिस प्रकार महाभारतका विराटपर्व सर्वश्रेष्ठ अंश है, उसी प्रकार रामचरितमानसमें सुन्दरकाण्ड सर्वश्रेष्ठ अंश है।

इसके श्रेष्ठताका कारण बताते हुए कहा गया है – ‘सुन्दरे सुन्दरो रामः सुन्दरे सुन्दरी कथा सुन्दरे सुन्दरी सीता सुन्दरे किन्न सुन्दरम् ॥’ अर्थात् सुन्दरकाण्डमें श्रीराम सुन्दर हैं, कथा सुन्दर है, सीता सुन्दर हैं। सुन्दरमें क्या सुन्दर नहीं है। इसके अतिरिक्त इसमें हनुमान्जीका पावन – चरित्र है जो भक्तोंके लिये कल्पवृक्ष है।

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Book Details

Book Nameहनुमान जी का सुंदरकांड
FormatPDF
Pages158
LanguageEnglish
Book Size1.8 MB
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भगवान् श्रीजानकीनाथजीकी आरती
ॐ जय जानकिनाथा, हो प्रभु जय श्री रघुनाथा । दोऊ कर जोड़े विनवौं, प्रभु मेरी सुनो बाता ॥ ॐ ॥

तुम रघुनाथ हमारे, प्राण पिता माता । तुम हो सजन सँगाती, भक्ति मुक्ति दाता ॥ ॐ ॥

चौरासी प्रभु फन्द छुड़ावो, मेटो यम त्रासा। | निश दिन प्रभु मोहि राखो, अपने संग साथा ॥ ॐ ॥

सीताराम लक्ष्मण भरत शत्रुहन, संग चारौं भैया । जगमग ज्योति विराजत, शोभा अति लहिया ॥ ॐ ॥

हनुमत नाद बजावत, नेवर ठुमकाता । कंचन थाल आरती करत कौशल्या माता ॥ ॐ ॥

किरिट मुकुट कर धनुष विराजत, शोभा अति भारी । | मनीराम दरशन कर, तुलसिदास दरशन कर, पल-पल बलिहारी ॥ ॐ ॥

जय जानकिनाथा, हो प्रभु जय श्री रघुनाथा । | हो प्रभु जय सीता माता, हो प्रभु जय लक्ष्मण भ्राता ॥ ॐ ॥

हो प्रभु जय चारौं भ्राता, हो प्रभु जय हनुमत दासा । | दोऊ कर जोड़े विनवौं, प्रभु मेरी सुनो बाता ॥ ॐ ॥

Pashupatastra Mantra Sadhna Evam Siddhi

ब्रह्मांड में तीन अस्त्र सबसे बड़े हैं – पशुपतास्त्र, नारायणास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र इनमें से यदि कोई एक भी अस्त्र मनुष्य को सिद्ध हो जाये तो उस व्यक्ति के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। लेकिन इनकी सिद्धि प्राप्त करना इतना सरल नही है। यदि आपमें कड़ी साधना करने का साहस नही है एवं धैर्य नही है तो ये साधना आपके लिए नही है।

मंत्र- ऊँ श्लीं पशु हुं फट् ।
विनियोगः
– ॐ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभार्थे जपे विनियोगः ।


षडङ्गन्यासः
ॐ हुं फट् हृदयाय नमः ।
श्लीं हुं फट् शिरसे स्वाहा । पं हुं फट् शिखायै वषट्।
शुं हुं फट् कवचाय हुं ।
हुं हुं फट् नेत्रत्रयाय वौषट् ।
फट् हुं फट् अस्त्राय फट् ।


ध्यान
मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्ज्वलम् त्र्यक्षं पन्न्गभूषणं शिखिशिखाश्मश्रु-स्फुरन्मूर्द्धजम् । हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तििादधानं विभुम् दंष्ट्रभीम चतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत् ।।

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